Meri ma jyada padhi likhi nhi hai
Meri ma jyada pdhi likhi nhi hai . 1889 (Chitrakoot)
माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
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माँ ने पाँच पाँच बच्चों को पाल लिया
ज़्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं है
घर सम्भालना बखूबी आता है उसको
ज़्यादा सुविधाएँ तो नहीं थी
क्योंकि पापा की नौकरी बड़ी जो नहीं थी
कब कहाँ कितना करना है खर्च
हिसाब खूब लगा लेती थी
आज भी उसकी वही सूझ बूझ क़ायम है
हाँ पर माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
हम बच्चों को उसने
नर्सरी-एलकेजी-यूकेजी में नहीं पढ़ाया
सीधे क्लास वन में दाख़िले से पहले
रोटियाँ सेकते वक़्त कोयले से लिख कर
बीस तक का पहाड़ा,
ककहरा और एबीसीडी सीखा दिया
मज़बूत नींव पर ही
खूबसूरत इमारत की तामीर होती है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
कुछ मीठा खाने का हम बच्चों का मन होता
बना देती थी आटे का हलवा
कम नहीं होता था वह किसी भी मिठाई से
झूला झूलने का बहुत शौक़ था मुझे
सिलबट्टे पर जब माँ मसाला पीसती
उसके कंधों पर मैं झूल लेती
उस झूले सा मज़ा अब कहीं नहीं मिलता
माँ हर बौझ हम बच्चों के लिए सह जाती थी
ममता को बोझ का एहसास कब है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
हम बच्चे भी माँ को उसी तरह चाहते थे
जब बह धूप में बर्तन धोती माँजती
उसके लाख मना करने पर भी
चादर तान के खड़े हो जाते थे
इम्तहान हमारा होता
वह मगर जागती रहती थी
जगने जगाने की उसकी यह फित्रत सच में नायाब है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
तब आज जैसे मुलायम बिस्तर कहाँ मयस्सर थे
माँ की गोद में ही हो पाता था नरमाहट का एहसास
कौन सोयेगा उसकी गोद में
अक्सर इस बात पर
हम भाई बहनों में बहस हो ज़ाया करती थी
जो सब से छोटा होता उसे माँ अपनी गोद में ले लेती थी
एक को पीठ की तरफ़ ले बोलती थी मँझली से
पैर बहुत ठंडा रहे तो उसको ही गोद में लेके सोजा
मीठी लोरी की धुन ना जाने कब हमें सुला देती थी
आज भी जब अरबी में आयतें बोलती है
वही लोरी याद आती है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
जब हम खेल के आते
माँ गुनगुने पानी से हमारे हाथ पैर धोती
और फिर तेल लगाती
एलोपैथी यूनानी नुस्ख़ों से नावाक़िफ़ थी
मालूम था बस कि उसके बच्चों की थकन कैसे दूर होगी
जब हम स्कूल से आते तो दरवाज़े पर हमेशा
इंतज़ार करते ही मिलती थी
सोने से पहले उसकी सुनायी ईसप की कहानियाँ
आज भी राह दिखाती है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
औरत का शौक़ होता है गहना
हम बच्चे ही थे उसके गहने
वो गहने नहीं बनवाती थी
वो क्रीम पाउडर नहीं लगाती थी
मेरे बच्चे मेरा नाम रोशन करेंगे
उसके चेहरे पर इस उम्मीद की चमक थी
उसने अपने सब बच्चों को ऊँची तालीम दिलवाई है
तालीम और होशमंदी के बीच की कड़ी उसी ने बताई है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
उसके पास कागज की डिग्री भले ना है
प्यार, समर्पण, त्याग, बलिदान और सहनशीलता जैसी
बड़ी बड़ी डिग्रियाँ है
शालीनता, सहजता उनके स्वभाव में शामिल है
ज़्यादा पढ़ना तो नहीं आता है उसे
लेकिन सुख दुख सच झूठ को बिना कहे पढ़ लेती है
हाँ माँ मेरी ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं है...
About this poem
Apne vicharo ki abhivyakti hai jisme ma ke samrpn ko drshaya gya h
Font size:
Written on April 14, 2023
Submitted by drskhan2021 on April 14, 2023
Modified on April 14, 2023
- 3:05 min read
- 2 Views
Quick analysis:
Scheme | |
---|---|
Characters | 6,443 |
Words | 618 |
Stanzas | 8 |
Stanza Lengths | 11, 9, 10, 8, 12, 10, 9, 7 |
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"Meri ma jyada padhi likhi nhi hai" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 10 Jun 2024. <https://www.poetry.com/poem/156879/meri-ma-jyada-padhi-likhi-nhi-hai>.
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